Monday 12 September 2011

ब्राह्मण का सपना

बहुत समय पहले की बात है। एक ब्राह्मण था जो भिक्षा माँगकर अपना गुजारा करता था। एक दिन उसे एक पात्र भर कर आटा भिक्षा में मिला। वह खुशी-खुशी घर आया और अपने बिस्तर के पास ही दीवार पर भिक्षा पात्र लटका दिया।
ब्राह्मण उस भिक्षा पात्र के पास लगे बिस्तर पर सो गया और सपने देखने लगा। उसने देखा कि देश में अकाल पड़ा है और उसने भिक्षा पात्र में रखा आटा बहुत अधिक दाम लेकर बेच दिया है। फिर वह सोचने लगा कि उस पैसे से उसने एक जोड़ी बकरियाँ खरीदीं और उन बकरियों को खूब अच्छी तरह से खिला-पिलाकर मोटा और तंदरुस्त कर दिया है। फिर उसने सपने में देखा कि उसने अपनी बकरियाँ काफी मंहगी बेच दी हैं और सोच रहा है, ‘‘अब तो मैं दो गाएं खरीदूँगा और वे मुझे बहुत सारा दूध देंगी। उस दूध से मैं मक्खन, मलाई निकालूँगा और मीठी-मीठी रसवाली मिठाइयाँ बनाऊँगा।’’
फिर सपना देखने लगा कि बाजार में उसकी एक बड़ी-सी दुकान हो जाएगी।

ब्राह्मण सपने देखता ही रहा। उसने देखा वह कीमती पत्थर बेचनेवाला एक अमीर व्यापारी बन गया है और सपने में ही वह सोचने लगा ‘‘अब तो मैं एक बड़ा-सा मकान बनाऊँगा। जिसके चारों ओर कमल के फूलों वाला तालाब होगा। कोई भी राजकुमारी मुझसे बे-झिझक विवाह करने को तैयार हो जाएगी और फिर हमारे दो सुन्दर-सुन्दर बच्चे होंगे।’’
पर बच्चे बहुत शैतान होंगे, इसलिए वे मुझे ज़रूर परेशान करेंगे।’’ उसने मन ही मन अपने से कहा। ‘‘मैं एक छड़ी लेकर उनकी पिटाई करूँगा।’’ सोते-सोते ही उसने एक छड़ी उठा ली और उसे हवा में घुमाने लगा। उसकी छड़ी आटे से भरे भिक्षा पात्र पर लगी और वह फूटकर नीचे गिर गया। वह सिर से पैर तक आटे से नहा गया।